
bhaju mana charana saṃkata harana
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भजु मन चरन संकट-हरन। सनक, संकर ध्यान लावत, सहज असरन-सरन॥ सेस, सारद, कहैं नारद संत-चिन्तन चरन। पद-पराग-प्रताप दुर्लभ, रमा के हित-करन॥ परसि गंगा भई पावन, तिहूं पुर-उद्धरन। चित्त चेतन करत, अन्तसकरन-तारन-तरन॥ गये तरि ले नाम कैसे, संत हरिपुर-धरन। प्रगट महिमा कहत बनति न गोपि-डर-आभरन॥ जासु सुचि मकरंद पीवत मिटति जिय की जरन। सूर, प्रभु चरनारबिन्द तें नसै जन्म रु मरन॥