
mana ki mana hi manjha rahi
Change Bhasha
मन की मन ही माँझ रही. कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही. अवधि असार आस आवन की,तन मन विथा सही. अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,विरहिनि विरह दही. चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही . ‘सूरदास’अब धीर धरहिं क्यौं,मरजादा न लही.