यदि किसी व्यक्ति से अनजाने में कोई गलती हो जाए और दूसरा उस विषय में ज्यादा संवेदनशील हो, बात का बतंगड बनाने पर तुल जाए तथा आक्रोश में ऐसी बातें कह जाए कि आपके सत्य, ईमान और अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगने लग जाए तो स्थिति विकट हो जाती है और थोड़ी देर के लिए आपसी रिश्तों की चूलें हिल जाती हैं ।
ऐसे में क्या करना चाहिए, इसकी समझ जरूरी है । स्वाभाविक रूप में ऐसा व्यवहार मिलने पर विचलित होना, तीव्र प्रतिक्रिया का उभरना और ईंट का जवाब पत्थर से देने का भाव जगना स्वाभाविक है, लेकिन आपसी रिश्तों की नाजुकता को देखते हुए स्थिति से निपटने का यह तरीका बहुत समझदारी वाला नहीं माना जा सकता । ऐसे में स्वर्णिम सूत्र होता है कि शांत रहें सकारात्मक बने रहें धैर्य न खोएं व धटना के मूल में विहित कारणों तक जाने की कोशिश करें व भूल से आवश्यक सबक लेकर आगे बढ़े।
साथ ही प्रतिपक्ष को उसके हाल पर छोड़ दे, उसके क्रोध-आक्रोश पर आपका क्या वश, जो आपके वश में है उसको साधें। आपके वश में आपका व्यवहार है,आपकी वाणी है, आपका आचरण है और आपके भाव-विचार हैं। इन्हें यथासंभव शांत व प्रतिक्रियाहीन बनाए रखने का प्रयास करें। यह कठिन तो सकता है लेकिन इसका अभ्यास करें ।
आपका संयम प्रतिपक्ष को आत्मचिंतन का अवसर देगा । उसे देर-सवेर अपनी गलती का एहसास जरूर होगा, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी अंतरात्मा की आवाज को अधिक देर तक नजरअंदाज नहीं कर सकता । साथ ही शांत रहने पर अपनी और से हुईं भूल-चूक का भी एहसास हो जाएगा, जिससे आगे चलकर ऐसी विकट स्थिति का सामना करने की नौबत नहीं आएगी ।
यदि दूसरे के अतिवादी व्यवहार पर आप भी अतिवादिता से उत्तर दे जाते हैं, ईट का जवाब पत्थर से देने पर उतारू हो जाते है, तो समझो आज आग में घी डालने का काम कर रहे हैं -ऐसे में स्थिति और बिगड़ेंगी। विवाद और तूल पकड़ेगा, आपसी कलह-क्लेश का संकट और गहराएगा, भावी संवाद की संभावनाएँ क्षीण होती जाएँगी ।
आपसी कटुता बढ़ेगी रिश्तों में दरार की नौबत आ जाएगी। साथ ही अनावश्यक अशांति एवं तनाव का वातावरण बनेगा । यदि स्थिति और बिगड़ती गई तो आवेश-आवेग के चरम पर स्थिति किसी दुर्घटना का भी रूप ले सकती है, जिसके रक्तरंजित समाचार आएदिन समाचारपत्रों में आते रहते हैं; जबकि एक पक्ष द्वारा बरती गई समझदारी एवं संयम द्वारा ऐसी स्थिति को टाला जा सकता था ।
यहीं शांति, संतुलन एवं सौहार्द का राजमार्ग है । यदी आपसी विस्वास, सद्भाव के साथ रिश्तों को मजबूती का राजपथ है । वही समस्या को अनावश्यक तूल देने के बजाय समाधान का सकारात्मक तरीका है। यदी आपसी रिश्तों या परिवार में सुंख-शांति का आधार है । जितना हम ऐसे अग्नि- परीक्षाओं से तपकर बाहर निकलेंगे, उतना ही हम आंतरिक रूप से दृढ़ होकर निकलेंगे ।
व्यक्तित्व अधिक सशक्त एवं चरित्र अधिक विश्वसनीय तथा प्रामाणिक होकर निकलेगा और जीवन परम लक्ष्य की ओर गतिशील होगा।
भविष्य में ऐसी चूकों की मात्रा भी कम होगी और प्रतिपक्ष भी अपनी प्रतिक्रिया को संयत करना सीखाता जाएगा ।
यदि प्रतिपक्ष में न्यूनतम समझ व संवेदनशीलता है, तो संभव है देर-सवेर उसका हृदय परिवर्तन हो जाए तथा उसके कार्य में परिमार्जन होने लगे । सत्य, प्रेम एवं धैर्य को इसी शक्ति के आधार पर हृदय परिवर्तन कर पाना सम्भव है।
हालांकि यह असीम धैर्य एवं सूझ की मांग करता है, जीवन के प्रति गहरी समझ से पनपी दृढता की माँग करता है। निस्संदेह यह प्रकाशपथ के योद्धाओं का मार्ग है, जो सदा सै ही इसका अनुसरण करते आए हैं और कर रहे हैं ।
यह विनम्रता, धीरता एवं अच्छाई को अचूक शक्ति पर विश्वास का मार्ग है । कोई इसको व्यक्ति की दुर्बलता समझने की भूल कर सकता है, लेकिन वास्तविकता ऐसी है नहीं, सही माने में यह वीरता का पथ है, जो अपने अमोघ प्रभाव के साथ समय के साथ स्पष्ट होता जाता है; क्यूंकि यह सत्य एवं धर्म का मार्ग है; जिसमें व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता ।
जब सत्य एवं ईमान आपके साथ होते हैं, तो स्वयं ईश्वरीय विधान साथ में सक्रिय होता है । जब व्यक्ति धर्म, सत्य एवं संवेदना की राह पर अडिग होता है तो प्रतिकूलताएँ अधिक देर तक नहीं टिक सकतीं । ऐसे में धैर्य एवं सत्य की जीत उतनी ही सुनिश्चित होती है, जितनी कि घनघोर निशा के बाद सुबह की लालिमा।